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Plastic

फॉसिल ईंधन उद्योग की जीवनरेखा

प्लास्टिक

अपनी क्रांतिकारी खोज के बाद से ही सिंगल यूज प्लास्टिक एक छोटी सी अवधि में ही पर्यावरण के लिए बुरा सपना सा बन गया है. आम तौर पर उसका सिर्फ एक बार इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन फिर भी उसे बनाने के लिए अरबों खर्च किए जा रहे हैं. आखिर क्यों?

Plastic

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फॉसिल ईंधन उद्योग के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है.

Climate catastrophe

इसका अस्तित्व पर्यावरण के अस्तित्व से उलट है, जो जलवायु तबाही से बचने के लिए तेल, गैस और कोयले को जमीन में रखने की वैश्विक प्रतिबद्धताओं पर निर्भर करता है.

भले विज्ञान ने इस बारे में बहुत पहले चेता दिया था, पर सरकारों और उद्योगों ने हाल ही में इस ओर कदम बढ़ाए हैं.

अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन जैसी बड़ी आर्थिक शक्तियों समेत दुनिया भर के मुल्क स्वच्छ ऊर्जा के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय कर रहे हैं. इलेक्ट्रिक व्हीकल के बाज़ार में तेज़ी आई है और 2020 स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की दिशा में रिकॉर्डतोड़ साल रहा है.

फिर भी फॉसिल ईंधन उद्योग हाइड्रोकार्बन के इस्तेमाल से पीछे नहीं हट रहा. इस उद्योग को प्लास्टिक में उम्मीद की किरण दिखी है, एक ऐसा व्यवसाय जहां इसकी पहले से गहरी जड़े हैं.

Sachet

ट्रिलियन डॉलर की इस तेल और गैस इंडस्ट्री के बड़े नाम सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर अपना दांव लगा रहे हैं. जैसे कि एक साधारण सा शैंपू सैशे.

हर साल ऐसे अरबों सैशे बनाए जाते हैं. हरेक की ज़िंदगी ज़मीन और समंदर की तह में मौजूद ऑर्गेनिक मैटेरियल से ही शुरू होती है.

Extracted crude oil

यहां से निकाली गई प्राकृतिक गैस और कच्चा तेल 99 फीसदी प्लास्टिक के लिए कच्चे माल की तरह इस्तेमाल होता है.

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की भविष्यवाणी है कि अब से लेकर साल 2050 तक तेल की मांग में होने वाली वृद्धि का क़रीब आधा हिस्सा पेट्रोकेमिकल से आएगा. कुछ अनुमान यह भी कहते हैं कि प्लास्टिक का उत्पादन तब तक क़रीब चौगुना हो जाएगा.

Petrochemical industry

इसका मतलब है पेट्रोकेमिकल उद्योग के लिए व्यापार का बड़ा मौका.

पेट्रोकेमिकल प्लांट्स उर्वरक, डिजिटल उपकरणों, टायरों और प्लास्टिक जैसे उत्पादों के लिए आधारभूत ढांचे की भूमिका निभाते हैं.

और यहां पर सैशे आकार लेने लगते हैं.

refined oil and gas

कुछ चरणों में संशोधित तेल और गैस से पॉलीप्रोपलीन और पॉलीएथिलीन के छर्रे बनाए जाते हैं. इन्हें आकार में ढालकर प्लास्टिक पैकेजिंग कंपनियां कई तरह के सिंगल यूज़ प्लास्टिक प्रोडक्ट बनाती हैं.

petrochemical infrastructure in the world

भारत और चीन समेत दुनियाभर के देश पेट्रोकेमिकल उद्योग के आधारभूत ढांचे को फैलाने के लिए अरबों का निवेश कर रहे हैं. कुछ निवेश फॉसिल ईंधन कंपनियां भी कर रही हैं.

अमेरिका में ये फैलाव फ्रैकिंग तकनीक से आया. इससे कंपनियों ने बड़ी मात्रा में सस्ती शेल गैस निकाली. गैस निकालने के बाद बचे उत्पाद और प्लास्टिक इथेन का इस्तेमाल मुनाफे के लिए करने के तरीके कंपनियां खोजने लगीं. बीते एक दशक में अमेरिकी पेट्रोकेमिकल प्रोजेक्टों में 209 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा हो चुकी है.

समीक्षकों का मानना है कि यह चलन सप्लाई आधारित समस्या को और गहरा करता है: सिंगल यूज़ प्लास्टिक बनाने के लिए जितनी क्षमता और सामग्री होगी, उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियों के लिए सामान बेचने का प्रलोभन उतना ही ज्यादा होगा.

साल 2018 में, दुनियाभर में लगभग 855 अरब सैशे बनाए गए थे. आज की वृद्धि दर के हिसाब से देखें तो साल 2027 तक यह संख्या 1300 अरब तक पहुंच सकती है.

Sarisari

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कुल मिलाकर यह विकासशील देशों में प्लास्टिक की ज्यादा खपत के चलन का हिस्सा है. सैशे के वैश्विक बाजार में दक्षिण-पूर्व एशिया का हिस्सा तकरीबन 50 प्रतिशत है.

फिलीपींस में हमारा एक सैशे, रोजाना इस्तेमाल हो रहे 16.4 करोड़ सैशों में से एक है. यानी सालाना करीब 60 अरब.

Plastic in the water

$8.2 $0.7

एक ऐसा देश जहां क़रीब 16 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती हो, हमारा शैंपू सैशे कम आमदनी वाले नागरिकों के लिए सस्ता है. ऐसे सैशे की कीमत क़रीब 60 यूरोसेंट होती है, जो बोतल की क़ीमत का लगभग दसवां हिस्सा होता है.

Sachet-plastic in the water

ये सैशे आमतौर पर रिसाइकल नहीं हो पाते. इसलिए कचरा उठाने वालों के लिए भी इनकी कोई कीमत नहीं है. और ये अक्सर गलियों या जलस्रोतों में पड़े मिलते हैं.

और जब प्लास्टिक प्रदूषण नालियों में होता है तो ये हैजा और डेंगी जैसी बीमारियों के फैलने का कारण बनता है. और अगर इन्हें जलाया जाए, तो ये वातावरण में जहरीले कण छोड़ते हैं, जो हृदय रोग और कैंसर की वजह बनते हैं.

अगर इन्हें गलने के लिए छोड़ दिया जाए, तो प्लास्टिक बहुत धीमे-धीमे माइक्रोप्लास्टिक में विघटित होती है. और आखिर में मिट्टी, पानी और खाद्य चक्र से होते हुए हमारे शरीर में पहुंच जाती है.

और जो लोग प्लास्टिक के बुरे असर से प्रभावित हो रहे हैं, वे आमतौर पर गरीब और पिछड़े समुदाय ही हैं.

उद्योग के कुछ बड़े नामों ने प्लास्टिक की समस्या का सामना करने के लिए 2019 में ‘अलायंस टू एंड प्लास्टिक वेस्ट’ की स्थापना कर इस ओर कदम बढ़ाने के संकेत दिए हैं.

Recycling

फॉसिल ईंधन, पैकेजिंग, उपभोक्ता उत्पाद और पेट्रोकेमिकल सेक्टरों के बड़े नाम इस अलायंस के सदस्य हैं. इन्होंने सिंगल यूज़ प्लास्टिक को पर्यावरण से हटाने के लिए 5 सालों में 1.2 अरब यूरो देने का वादा किया है.

प्लास्टिक वेल्यू चेन के सदस्यों की मौजूदगी में अलायंस ने कहा है कि वे उपाय खोजने में समावेशी सोच रख रहे हैं. इस अलायंस का प्राथमिक लक्ष्य कचरा प्रबंधन को बेहतर करना है, जिसमें रिसाइकलिंग भी शामिल है.

उदाहरण के लिए कहें तो हमारा सैशे शायद ऐसा नहीं है जिसे दोबारा किसी और रूप में इस्तेमाल किया जा सके. इसकी कई और अलग-अलग तहें रिसाइक्लिंग प्रक्रिया को मुश्किल और महंगे से लेकर नामुमकिन तक बना देती है.

ऐसी ही कहानी कई और सिंगल यूज़ प्लास्टिक उत्पादों की है. भले ही प्लास्टिक उत्पादन की दर 1950 के मुकाबले 200 गुना बढ़ गई हो, पर इसमें से मात्र 9 प्रतिशत ही रिसाइकिल हो पाता है.

और जब अलायंस कचरा प्रबंधन पर ध्यान लगा रहा है, इसके कई सदस्य नए प्लास्टिक उत्पादों की मात्रा बढ़ाने के लिए लगातार निवेश कर रहे हैं.

Polution

और इसलिए, हमारे सैशे का सफर निरंतर जारी है.

गलियों से होते हुए एक नदी में पहुंचना, वहां से समुद्र में, जहां इसे कई समुद्री जीव निगल जाते हैं. और फिर बहकर वह समंदर किनारे जमीन पर पहुंच जाता है, जहां से इस सफर की शुरुआत हुई थी.

ये खाली सैशे चाहे दिखने में मामूली लगें, फिर भी जो प्रक्रिया इसे जीवन में लाई, वह विशाल फॉसिल फ्यूल सेक्टर के संभावित भविष्य को दिखाती है.

कुछ कहते हैं कि उद्योग एक जोखिम भरा जुआ खेल रहा है और प्लास्टिक की मांग बहुत पहले ही अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच जाएगी क्योंकि विभिन्न समाज सर्कुलर इकनॉमी की ओर बढ़ रहे हैं.

पर इस दांव की क़ीमत ज्यादा है. अगर प्लास्टिक उत्पादन अनुमान के मुताबिक बढ़ता है, तो 2050 तक उत्पादन और बेकार पदार्थों को जलाए जाने के चलते होने वाला वैश्विक उत्सर्जन 2.8 गीगाटन तक पहुंच जाएगा, करीब-करीब हालिया सालों में हो रहे भारत के सालाना आंकड़ों के बराबर.

विशेषज्ञों का कहना है कि यह हमें आने वाले कई दशकों तक उत्पादन में बांधे रखेगा और प्लास्टिक संकट को दोबारा दुरुस्त करना मुश्किल हो जाएगा.

जहां तक बात है हमारे सैशे की, यह कुछ ही घंटों की बात है. हवा आएगी और उसे उड़ाकर समंदर की यात्रा पर ले जाएगी. और वहां यह आने वाले कई दशकों तक पड़ा रहेगा. यह है तेल उद्योग का अवशेष, जो एक बार इस्तेमाल में आने के बाद दशकों तक मौजूद रहता है.

Rubbish on the beach

कार्य प्रणाली

इस रिपोर्ट में इस्तेमाल हुईं रिपोर्टों और स्रोतों की पूरी सूची नीचे दी गई है. https://github.com/dw-data/plastic-fossil-fuels.

Credits

Authors: Holly Young and Tamsin Walker

Illustrations: Nora-Charlotte Tomm, Anna Wills

Developement: Olga Urusova

Design: Angela Dehio

Design management: Irmina Blachnik

Executive editor: Vanessa Fischer